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शब्दार्थ (सा. श्रवण करनेवाला अ० कोई वक्त जे. जहां खं० वंदक क कात्यायन गोत्री ते०तहां उ० आये आ० ।
आकर खं० खंदक क० कात्यायन गात्री को इ० यह अ० आक्षेप से पु० पूछे मा० मागध कि क्या स० अन्त वाला लो०लोक अ० अनंतलोक स०अंतसहित जी०जीव अ०अनंत जी जीव स०अन्त सहित सिद्धी अ० 300 अनंत सिद्धी स० अंत सहित सिद्ध अ० अनंत सि० सिद्ध के किस म० मरण से म० मरता जी० जीव व वृद्धिपामें हा० हानीपोंमें ए. इतना आ० कहो बु० बोलते एक ऐसा से वह खं० खंदक
सावए परिवसइ ; तएणं से पिंगलए नाम नियंठे वेसालिय सावए अण्णया कयाई जेणेव खंदए कच्चायणसगोत्ते तेणेव उवागच्छइ २ त्ता खंदयं कच्चायणसगोत्तं इण मक्खवं पुच्छे, मागहा ! किं सअंतेलोए अणंतेलोए ? सअंतेजीवे, अणंते जीवे ?
सअतासिद्धी, अणंतासिद्धी ? सअंतेसिद्धे, अणंतेसिद्धे ? केण वा मरणेणं मरमाणे जीवे भावार्थ
छद निमित्त सो शब्द उत्पत्ति का शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, व अनेक ब्राह्मण सन्यासी संबंधी नीति शास्त्र में निपुण थे ॥ ७ ॥ उस सावत्थी नगरी में श्री महावीर के वचन सुनने में रसिक पिंगलक नामक निग्रंथ रहता था. महावीर भगवन्त के वचन सुनने में रसिक ऐसे पिंगलक निर्ग्रन्थ एकदा कात्यायन गोत्रीय खंदक नामक परिव्राजक की पास आये, आकर के उन कों ऐसा प्रश्न पुछा कि अहो मागधै ! क्या
१ मगध देश में उत्पन्न होनेवाले.
38०११ दूसरा शतक का पहिला उद्देशा -
4. पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र
marwari
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