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शब्दार्थ 4 इतिहास पं० पांचवा निः निगण्टु संग्रह छ.. छठा च० चारवेद का सं० मांगोपांग स० रहस्य सहित
मा स्मरण करनेवाला वा शुद्धकरनेवाला धा धारक पा०पारगामी स०छअंग स०कापिलीयशास्त्र वि पंडित सं० गणित शास्त्र. मि० अक्षररूप शास्त्र वा० शब्द छ० छंद नि० शब्दः उत्पति का जान जो० ज्योतिषी शास्त्र अ० अन्य काई ब० बहुत बैं० ब्राह्मण म० परिव्राजक में न० नय में मुक अच्छा निश्चयार्थ का जान हो० था ॥ ७ ॥ त० तहां सा. सावत्थी न० नगरी में पिं० पिंगलक नि० निग्रंथ वे० वैशालिक
वेय, अहव्वणवेय, इतिहास पंचमाणं, निघंटुछट्ठाणं, चउण्हं वेयाणं संगोवंगाणं, सरहस्माणं सारए, वारए, धारए, पारए, सडंगवी, सद्वितंतविसारए,संखाणे, सिक्खाकप्पे, वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे, अण्णे गुय बहुसु बंभण्णएसु परिव्वायएसु नएस सुपरि
निट्ठिएयावि होत्था. ॥ ७ ॥ तत्थणं सावत्थीए नयरीए पिंगलए नामंनियंढे वेसालिय भावार्थ
शिष्य कात्यायन गोत्रीय खंदक नामक. परिव्राजक रहताथा. वह खंदक परिव्राजक ऋग्वेद, यजुर्वेद में सामवेद, अथर्ववेद, इतिहास सो प्राचिनकाल के महापुरुषों की कथाओं, और निघन्दु सो अनेकार्थ वाची कोप ऐसे षड्शास्त्र के ज्ञाता थे. और चारों वेदों के छअंग और उस में कहे हुवे प्रबंध सो अंग, इनकी
प्रयुक्ति, युक्तियों को वारंवार स्मरण करनेवाले, अशुद्ध पाठ का निषेध करनेवाले, हृदय में धारन करनेवाले |व पारगामी थे. वैसे ही छ अंग व कापीलिय शास्त्र के ज्ञाताथे. संख्या-गणितविद्या, शिक्षाकल्प, व्याकरण,
8.3 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी मालाप्रसादजी *