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पंचमा बबाहमणति (अगति) सत्र
बिउसग्गे, सेत्तं संसार विउसगे ॥ से कितं कम्मविउसगे ? कम्मविउसग्गे अढविहे
५० तंजहा-णाणवरणिजकम्म विठसग्गे जाव अंतरायकम्म विउसग्गे, सेत्तं कम्म विउसग्गे ॥ सेत्तं भाव विउसग्गे ॥ सेत्तं अभितरएतवे ॥ सेवं. भंते ! भंतेत्ति ॥. पणवीसइमस्सयस्स सत्तमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २५ ॥ ७॥ . रायगिहे जाव. एवं वयासी-णेरइयाणं भंते ! कह उववजंति ? गोयमा ! से जहा.
नामए पवए, पवयमाणे अज्झवसाणणिन्वत्तिएणं करणांवाएणं भेयकाले तंट्ठाणं संसार विउस्मर्ग यावत् देव संसार विउत्सर्ग यह संसार विउत्सर्ग हुवा. कर्म विउत्सर्ग किसे कहते हैं ! कर्मी जिल्लन के आठ भेद कहे हैं । अनावरणीय कर्म विउत्सर्ग यावर अंतस्य कर्म विउत्सर्ग यह कर्म घिउर्ग: छुपा. यों भाव विउतार्ग बुद्धा. इस तरह अभ्यासर तप के भेद संपूर्ण हुवे. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यह पच्चीसवा तक को माता उद्देशा मंपूर्ण हुवा. ॥ २५ ॥ ७॥ . है मातवे उहशे में संयति का कथन काहा. आठवे उद्देश में संसारी जीवों की उत्पति का कथन कहते राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर श्री मौतम सामी पुछने लगे कि अहो मगन् ! के नारकी कैसे उत्पन्न होते हैं. १: अहो गौतम जैसे प्लवक .'
पचीसवा शतकका आठवा उद्देशा 4
भावार्थ