SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2913
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र भावार्थ 4 पंचमांग विवाह पष्णत्ति ( भगवती ) सूत्र च चउडोयारे प० तं पुहुत्तवितक्के सत्रियारे, एगत्तवितके अवयारे, सुहुमकिरिए अणिय, समुच्छिन्न किरिए अप्पडिवात ॥ सुक्करसणंञ्झणस्स चत्तारि लक्खणा पण तंजा खंती, मुशी, अज्जवे, मद्दवे ॥ सुक्करसणं ज्झाणस्स वत्तरि आलंबणा पण्णत्ता, तंजहा अव्हे, असमोह, विवेगे, विउसग्गे ॥ सुक्कसणं ज्झाणस्स चारि अणुहाओ, पण्णत्ता ओतंजहा-अगतवत्तियाणुप्पेहा, विष्परिणामाणुप्पेहा, अमुभाणुप्पेहा, आवायाणुपेहा ॥ तंज्झाणे ॥ १३ ॥ से किंतं विउसग्गे ? विउसग्गे दुविहे प० {नुप्रेक्षा अत्मा अकेली है ऐसा चितवे २ अनित्यानुप्रेक्षा. सब अनित्य है ऐसा चितवे ३ असशरणाणुप्रेक्षा संसार {में कोई भी किस को शरणभूत नहीं है और ४ संसारानुप्रेक्षा चतुर्गतिक संसार में परिभ्रमण किया, अब निर्वृतूं ऐसा चितवे. शुक्लध्यान के चार भेद और एक २ में चार२ प्रति भेद कहे हैं. १ पृथक्त्व वितर्क सविचार२ एकत्वविवितर्क अविचार ३ सूक्ष्मक्रिया अनिय४ समुच्छिन्न क्रिया अप्रति पाति. शुक्ल ध्यान के चार लक्षण. १ क्षांति १२ मुक्ति ३ ऋजुता और ४ मृदुता शुक्ल ध्यान के चार अवलम्बन. १. अव्यय २ असमोह ३ विवेक और ४ विउत्सर्ग. शुक्ल ध्यान के चार अनुप्रेक्षा. अनंतवर्तिकानुप्रेक्षा २ विपरीतानुमेक्षा ३ अशुभानुप्रेक्षा और आयानुप्रेक्षा. यह ध्यान तप कहा || १२ || विसर्ग कायोत्सर्ग कि से कहते हैं. विउत्सर्ग << पच्चीसवा शतक का सातवा उद्देशा .२८९५
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy