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लक्खणा प० तं. उस्सण्णदोसे, बहुदोसे, अण्णाणदोसे, आमरणांतदोसे ॥ धम्मज्झाणे , चउबिहे चउप्पडोयारे ५० तं. आणाविजए, अवायाविजए, विवागविजए, संड्राणविजए ॥ धम्मस्सणंज्झाणस्स चत्तारि लक्खणा प०० आणारूई, णिसग्गरुई सुत्तरुई, ओगाढरई ॥ धम्मसणं ज्झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता, तंजहा-वायणा पडिपुच्छणा, परियट्टणा, धम्मकहा ॥ धम्मस्सणं ज्झाणस्स चत्तारि अणुप्पहाओ पण्णत्ताओ तंजहा एगत्ताणुप्पेहा,अणिच्चाणुप्पेहा, असरणाणुप्पहा, संसाराणुप्पेह।।सुक्केझाणे । का उपाय चितवे. रौद्रध्यान के चार लक्षण कहे हैं. १ हिमादि दोष लगावे २ उक्त दोषों में प्रवृत्ति करे
१३ कुशास्त्र का अभ्यास करे और ४ आमरणांत तक हिंसादि दोषों का त्याग नहीं करे. धर्म ध्यान के चार भावार्थ भेद और चारों में चार २ प्रति भेद कहे. १ आज्ञा विचय-वीतराग की आज्ञा का चितवन करे २ अ
पाय विचय-राग द्वेष से होते हुये दुःख का चितवन करे ३ कर्म विचय कर्मों के दुःख का चितवनकरे और ४ संस्थान विचय लोक के संस्थान का चितवनकर, धर्म ध्यान के चार लक्षण कहे. १ आज्ञा रुचिजिनाज्ञा आराधेने की रुचीवाला,रनिसर्ग रुचिस्वाभावेतत्व जानेकीरुची होवे,३ मूत्ररुची शास्त्रपढने सुनने की रुचीहोचे १२ अवगाढ रुचि सो द्वादशांग का ज्ञान विस्तार पूर्वकधारने की रुचि होवे.धर्मध्यान के चार अवलम्बन कहे। 1 ११ वाचना २ प्रतिपूच्छना ३ पर्यटणा-फेरना और ४धर्मकथा. कहना! धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षा.१एकत्व
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी +
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादनी *
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