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अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
सुद्धीए जहण्णेणं एक, उक्कोसेणं देसूणाहिं एगूणतीसाए वासेहिं ऊणिया पुन्चकोडी सुहुमसंपराए जहा णियंठे ॥ अहक्खाए जहा सामाझ्यसंजए ॥ सामाझ्यसंजयाणं भंते! कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सम्बई । छेदोवट्ठावाणिय पुच्छा? गोयमा ! जहण्णेणं अदाइजाइ वाससयाई. उक्कोसेणं पण्णासं सागरोवमकोडीसयसहस्साई। परिहारविसुद्धीए पुच्छा ? गोयमा ! जहणेणं देसूणाई दोवाससयाई, उक्कोसेणं देसूणाओ पुवकोडीओ, सुहुमसंपरायसंजए पुच्छा ? गोयमा ! जहणणं एक समय
उक्कोसेणं अंतोमुहुतं । अहक्खाय संजया जहा सामाइयसंजया ॥ २९ ॥ सामाइय कहना. अब बहुत आश्री, अहो भगवन् ! बहुत सामायिक संयमी कितना काल तक रहे ? अहो गौतम ! सब काल रहे. छदोपस्थापनीय की पृच्छा, अहो गौतम ! जघन्य अदाइ सो वर्ष क्यों कि उत्सर्पिणी में, प्रथम तीर्थंकरका शासन इतना वर्ष पर्यंत रहे उत्कृष्ट पचास लाख क्रोड सागरांपम क्यों कि अवसर्पिणीमें प्रथम तीर्थकर का शासन उतना काल पर्यंत रहे. परिहार विशुद्ध की पृच्छा, अहो गौतम ! जघन्य देश जणा दो सो वर्ष उत्कृष्ट देश ऊणा पूर्व कोड. सूक्ष्म संपराय संयम की पृच्छा, अहो गौतम ! जघन्य एक समय उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त, यथाख्यात का सामायिक संयम जैसे कहना ॥ २९ ॥ अहो भगवन् ! सामायिक
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .
भावार्थ