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________________ सूत्र भावार्थ + पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र 4384 संजयरसणं भंते ! णाणाभवग्गहणिया केवइया आगरिसा पण्णत्ता ? जहा उसे ॥ छेदोवायरसपुच्छा ? गोयमा ! जहणणं दोण्णि, उक्कोसेणं उवरिं नवहं स्याणं अंतोसहस्सं ॥ परिहारविसुद्धियरस जहणणं दोणि उक्कोसेणं सन्त ॥ सुहुम संपरागस्स जहणणेणं दोण्णि उक्कणं णव ॥ जहणणं दोणि उक्कोसेणं पंच ॥ २८ ॥ अह क्वायरस सामाइय संजएणं भंते ! कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणएहिं नवहिं वासेहिं ऊणिया पुल्वकोडी ॥ एवं छेदोवट्ठावणिएव ॥ परिहारवि [गौतम ! बकुश जैसे कहना. छेदोपस्थापनीय की पृच्छा, अहो गौतम ! नवसों से अधिक व एक हजार की अंदर. परिहारविशुद्ध जघन्य दो उत्कृष्ट सात. सूक्ष्म संपराय जघन्य दो उत्कृष्ट नव और यथाख्यात {जघन्य दो उत्कृष्ट पांच वक्त आवे ॥ २८ ॥ अहो भगवन् ! सामायिक संयम की कितनी स्थिति [ कही ? अहो गौतम ! जघन्य एक समय उत्कृष्ट कुच्छ कम नव वर्ष एक पूर्व क्रोड में ऊणा. ऐसे ही छेदोपस्थापनीय का कहना. परिहार विशुद्ध की पृच्छा जघन्य एक समय उत्कृष्ट कुच्छ कम इक्कतीस वर्ष ऊणा पूर्व कोड सूक्ष्म संपराय का निर्ग्रन्थ जैसे कहना. यथाख्यात का सामायिक संयमी जैसे १०३०३ पञ्चीसवर शतक का सावना उद्देशा २८७१
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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