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शब्दार्थ
- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र Big
ह० शीघ्र आ० आते हैं हं० हां गो. गौतम म० मृतभोजी नि. निग्रंथ जा. यावत् नो० नहीं पु. फीर इ. यहां ह० शीघ्र आ०. आते हैं से उनको भं० भगवन् कि क्या व. कहना सि० सिद्ध बु० बुद्ध मु. मुक्त पा० पारंगत प० परंपरा तग व. कहना सिसिद्ध मु. मुक्त प० परिनिवृत्त अंतकृत स० सर्व दुः दुःख से प० मुक्तहुवे व० कहना स. वह ए. ऐसा भं० भगवन् भ० भगवान् है रणजे णो पुणरवि इच्छत्तं हव्व मागच्छइ ? हंता गोयमा ! मडाईणं नियंठे जाव १ नो पुणरवि इत्थत्तं हव्वं आगच्छइ ॥ सेणं भंते ! किं वत्तव्वं सिया ? गोयमा ! सि
डेत्ति वत्तव्वं सिया, बुद्धेत्ति वत्तव्वं सिया, मुत्तेत्ति वत्तव्यं सिया, पारगएत्ति वत्तव्वं सि
या, परंपरगएत्ति वत्तव्वं सिया, सिद्धे बुद्धे मुत्ते परिनिन्बुडे, अंतकडे सव्व दुक्खप्पतार्थ करणीकरनेवाले निग्रंथ क्या पुनः मनुष्यादि गति में नहीं आते हैं ? हां गौतम ! प्रासुक भोजन करनेवाले यावत् निष्टितार्थ करणीवाले पुनः मनुष्यादि गति में नहीं आते हैं, अहो भगवन् ! उन को क्या कहना ? अहो गौतम ! उन को सव कार्य की सिद्धि होने से सिद्ध कहना, चराचर पदार्थ go के ज्ञाता होने से बुद्ध कहना, समस्त कर्म से मुक्त होने से मुक्त कहना, संसार सागरको उत्तीर्ण होने से
पारंगत कहना, मिथ्यात्वादि गुणस्थान अथवा मनुष्यादि गति को परंपरा से जानने से अर्थात् भव समुद्र * के पार पहुंचने से परम्परागत कहना, कषाय से निवर्तने से परिनिवृत, संसार का अंत करने से अंतकृत ।
333 दूसरा शतक का पहिला उद्देशा.
भावाथे