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सूत्र
भावार्थ
48 पंचांग विवाहपण्णति ( भगवती ) सूत्र
संजमवा, असं मंत्रा उवसंपज्जइ अहक्वाय मंजएणं पुच्छा गोयमा ! अहंक्वाय संजय तं जहति हुम संपराय संजमंवा असंजमंवा सिद्धगतिंवा उवसंपज्जइ ॥ २४ ॥ सामाइय संजणं भंते ! किं सण्णोवउ ते होज्जा, णो सण्णोवउत्ते होज्जा ? गोयमा ! सण्णो उसे होज्जा, जहा वउसे । एवं जात्र परिहारविसुद्धीए || सुहुमसंपराए अहखाएय जहा पुलाए ॥ २५ ॥ सामाइयसंजरणं भंते ! किं आहारए होजा, अनाहारए होज्जा ? जहा पुलाए एवं जात्र सुहुम संपराए; अहक्खाए जहा सिणाए ॥ २६ ॥ सामाइय संजएणं भंते ! कइ भवग्गहणाई होज्जा ? गोयमा ! जहणणं
सूक्ष्म संपरायपना छोडे, सामायिक, छेदोपस्थापनीय, यथाख्यात व असंयम अंगीकार करे. यथाख्यात की पृच्छा, अहो गौतम ! यथाख्यातपना छोडे और सूक्ष्म संपराय, असंयम अथवा सिद्धगति प्राप्त करे. | ॥ २४ ॥ अहो भगवन् ! सामाजिक संयमी क्या संज्ञोपयुक्त या नोसंज्ञोपयुक्त है ? अहो गौतम ! संज्ञो{पयुक्त होवे बगैरह बकुश जैसे कहना. यों परिहार विशुद्ध पर्यंत कहना. सूक्ष्म संपराय यथाख्यात का पुलाक जैसे कहना || २५ || अहो भगवन् ! सामायिक संयमी क्या आहारक होवे या अनाहारक होवे' अहो गौतम ! जैसे पुलाक का कहा वैसे ही कहना. यों सूक्ष्म संपराय पर्यंत कहना. यथाख्यात का } स्नातक जैसे कहना ॥ २६ ॥ अहो भगवन् ! सामायिक संयमवाला कितने
भव करे ? असे गौतम ||
4.38+ पचीसवा· शतक का सातवा उद्देशा 4984
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