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१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिः।
समाणे किं गतिं गच्छति ? गोयमा ! देवगतिं गच्छइ ॥ देवगति गच्छमाणे किं. भवणवासीमु उववजेजा, वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा, जोइसिएसु उवरज्जेजा, वेमाणिएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा! णो भवणवासीसु उववज्जेज्जा, जहा कसायकुसीले, एवं छेओवट्ठावणिएवि ॥ परिहारविसुद्धीए जहा पुलाए ॥ सुहुमसंपराए जहा णियंठे।।अहक्खा ए पुच्छा ? गोयमा ! एवं अहक्खायसंजएवि, जाव अजहण्णमणुकोणं अणुन्तरविमाणेसु उववज्जेज्जा, अत्थेगइया सिझइ जाव अंतं करेइ ॥ सामाइय संजमेण
भंते ! देवलोगेमु उववजमाणे किं इंदत्ताए उववज्जइ पुच्छा ? गोयमा ! आविराहणं पीछे कौनमी गति में जाने ? अहो गौतम! देव गति में जाने देवगति में जाते क्या भवन णव्यंतर, ज्योतिषी या वैमानिक में जावे ? अहो गौतम! भवनवासी में उत्पन्न होवे. वगैरह में कशील का कहा वैसे ही कहना. यों छेदोपस्थापनीय का कहना. परिहारविशुद्ध का सूक्ष्मसंपराय का निर्ग्रन्थ जैसे कहना. यथाख्यात की पृच्छा, अहो गौतम ! ऐसे ही यथाख्यात का कहना. यावत् अजघन्यअनुत्कर्ष अनुत्तर विमान में उत्पन होवे. और किसनेक सीझे बुझे यावत् अं करे. अहो भगवन् ! सामायिक संयमी देवलोक में उत्पन्न होने क्या इन्द्रपने उत्पन्न होवे वगैरह पृच्छा,
. पाशा-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
व