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सूत्र
मात्रार्थ
4*6* पंचमंग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
पडुच्च एवं जहा कसायकुसीले || एवं छेदोवद्वावणिएवि परिहारविमुद्धिए जहा पुलाए सेसा जहा नियंठे ॥ सामाइयसंजएणं भंते ! देवलोगेसु उववज्जमानस्स इयं कालं ट्ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं दो पलिओदमाई, उक्कोसेणंतेची सं सागरोवमाई; एवं छेदोवद्वावणिएव ॥ परिहारविसुवियस्स पुच्छा ? गोयमा ! जहणणं दो पलिओदमाई, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाई, सेसा जहा नियंठाण ॥ १३ ॥ सामाइय संजयस्सणं भंते ! केवइया संजमठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेजा संजमट्ठाणा पण्णत्ता । एवं जस्स परिहारविसुद्धियरस || मुहुमसंपरागसंज
अहो गौतम ! अविराधना आश्री कपाय कुशील जैसे यों छेदोपस्थापनीय का जानना. परिहार विशुद्ध का पुलाक जैसे शेप का निर्ग्रन्थ जैसे. अहो भगवन् ! सामायिक संयमी की देवलोक उत्पन्न होते कितनी { स्थिति कही ? अशे गौतम ! जवन्य दल्योपम उत्कृष्ट तेत्तीम सागरोपम यो छेदोपस्थापनीय का {जानना. परिहार विशुद्ध की पृच्छा, अहो गौतम ! जघन्य दो पल्योपम उत्कृष्ट अठारह सागरोपम. शेष दोनों की निर्ग्रन्थ जैसे कहना ॥ १३ ॥ संयम स्थानद्वार. अहो भगवन् ! सामायिक संयम को कितने स्थान कड़े है? अहो गौतमः असंख्यात संयम स्थान कहे हैं ऐसे ही परिहार विशुद्ध पर्यंत कहना. सूक्ष्म
4983- पचीसरा शतक का साना रदेशा 80-8
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