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इ पण्णत्ति ( भगवति ) सूत्र 48+
होजा, उसप्पिणीकाले होज्जा णो ओसप्पिणी णो उस्सप्पिणीकाले होजा? गोयमा! है. ओसप्पिणी जहा वउसे, एवं छेओवट्ठावणीएवि ॥ णवरं जम्मण संतिभावं पडुच्च चउसुवि पलिभागेसु णत्थि ॥ साहरणं पडुच्च अण्णयरे पलिभागेसु होज्जा ॥ सेसं तंचेव ॥ परिहारविसुद्धीए पुच्छा ? गोयमा ! ओसप्पिणीकाले वा होजा उस्सप्पिणी काले वा होजा, णे ओसप्पिणीकाले णो उस्सप्पिणीकाले वा होज्जा ॥ जइ ओसप्पिणीकाले होजा जहा पुलाओ ॥ उस्सप्पिणीकालेवि जहा पुलाओ। सुहम संपराओ
जहा णियंठो ॥ एवं अहक्खाओवि ॥ १२ ॥ सामाइयसंजएणं भंते ! कालगए होवे अथवा णो अवसर्पिणी को उत्सर्पिणीकाल में हो ? अहो गौतम ! अवप्तर्षिणी में वगैरह बकुश जैसे कहना. ऐसे ही छेदोपस्थपनीय का कहना परंतु जन्म व विद्यमान आश्री यावत् पलिभाग में होवे | नहीं, साहरण आश्री अन्य स्थान भी होवे. परिहार विशुद्ध की पृच्छा, अहो गौतम ! अवसरिणी में होवे, उत्सर्पिणी में भी होवे अथवा णो अबसार्पणी णो उत्सर्पिणी में भी होवे. यदि अंवसा पिणी में होवेतो पुलाक जैसे कहना. उत्सर्पिणी का भी पुलाक जैसे कहना. सूक्ष्म संपराय। यथायात का निर्गन्य जैसे कहना ॥ १२ ॥ अहो भगवन् ! सामायिक संयमी काल हुने?'
पञ्चासत्रा शतकका साना उद्देशा
भावार्थ