________________
सूत्र ०७
भावार्थ
48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
उदीरा पंचविह उदीरएवा ॥ सत्तउदीरेमाणे आउयवज्जाओ सत्तकम्म पगडीओ उदीरेइ अट्ठ उदीरेमाणे पडिपुण्णाओ अटूकम्मपगडीओ उदीरेइ छउदीरेमाणे आउय वेयणिज बजाओ छकम्मपगडीओ उदीरेइ पंचउदीरेमाणे आउयवेयणिज मोहणिज्ज वज्जाओ पंचकम्मपगडीओ उदीरेति 11 नियंठेणं पुच्छा, गोथमा ! पंचविह उदीरएवा दुविह उदीरए वा; पंचउदीरेमाणे आउय वेयणिज्ज मोहणिज्ज- वज्जाओ पंचकम्मपगडीओ उदीरे, दो उदारेमाणे णामं च गोयंच उदीरेइ || सिणाएणं पुच्छा, गोयमा ! दुविह उदीरए वा अणुदीर वा दो उदीरेमाणे णामं च गोयंच उदीरेति ॥ २४ ॥ पुलाएणं भंते ! आयुष्य और वेदनीय कर्म वर्जना, पांच की उदीरणा में आयुष्य वेदनीय व मोहनीय वर्जकर पांच कर्म उदेरे. निर्ग्रन्थ की पृच्छा. अहो गौतम ! निर्ग्रन्थ पांच कर्म उदेरे अथवा दो कर्म उदेरे. की उदीरणा में आयुष्य वेदनीय व मोहनीय वर्जकर पांच कर्म प्रकृतियों और दो कर्म की नाम और गोत्र की उदीरणा करे. स्नातक की पृच्छा, अहो गौतम ! दो कर्म की उदीरणा करे नहीं. दो कर्म की उदीरणा करे तो नाम और गौथ कर्म की उदीरणा करे ॥ २४ ॥ अहो
पांच कर्म उदीरणा में उदीरणा करे अथवा
मकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजे *
२८३४