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________________ २७ नहीं शब्दार्थ * } निश्वासले वा वायुकाय वा० वायु कायमें अ० अनेक स० शतसहस्र बार उ० मरे उ० मरकर त तहां भुव वारंवार प० उत्पन्नहोवे हं० हां गो० गौतम जा० यावत् प० उत्पन्नहोवे से० वह भं० भगवन् किं० क्या पु० स्परी उ० मरे अ०नहीं स्पर्शी उ० मरे गो० गौतम पु० स्पर्शी उ० मरे नो० (अ० अस्पर्शी उ० मरे सें० वह मं० भगवन् किं० क्या स० सशरीरी नि० निकले अ० अशरीरी (नि० निकले गो० गौतम सि० कदाचित् स० सशरीरी नि० निकले सि० कदाचित् अ० अशरीरी उस्ससंतिवा, निस्ससंतिवा ? हंता गोयमा ! वाउयाएणं जाव निस्ससंति वा ॥ वाउयाएणं भंते ! वाउयाएचेत्र अणेगसयस हस्तखत्तो उदाइ उदाइत्ता, तत्थेव भुजो भुजो पच्चायाइ ? हंता गोयमा ! जाव पच्चायाइ से भंते! किपुट्ठे उदाइ अपुट्ठे उहाइ ? गोयमा ! पुढे उद्दाइ, नो अपुट्ठे उदाइ । से भंते! किं ससरीरी निक्खमइ, असरीरी निक्खमइ ? गोयमा ! सियससरीरी निक्खमइ, सियअसरीरी निक्खमइ । से केणट्टेणं भंते ! लक्षवार मरकर वहांही वारंवार उत्पन्न होते हैं ? हां गौतम वायुकायके जीव अनेक बार मरकर वहांही वारंवार उत्पन्न होते हैं. अहो भगवन् ! वायुका के जी क्या स्पर्श कर मरते हैं या विना स्पर्शे मरते }हैं ? अहो गौतम ! सोपक्रम की अपेक्षा से स्पर्धा परे परंतु नहीं स्पर्शा हुवा मरे नहीं. अहो भगवन् ! क्या वे स्वकलेवर से शरीर सहित नीकलते हैं या शरीर रहित नीकलते हैं ? अहो गौतम! कथंचित शरीर सहित सूत्र भावार्थ 42 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी * प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी जालाप्रसादजी * २५४
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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