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गोयमा ! सम्वत्थोवा परमाणुपोग्गला सेया, णिरेया असंखेजगुणा एवं जाव असं--: खेजपएसियाणं खंधाणं ॥ एएसिणं भंते ! अणेतपएसियाणं सेयाणेय णिरेयाणय कयरे २ जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा अणंतपदेसिया खंधा णिरेया, सेया अणंतगुणा ॥ ३८ ॥ एएसिणं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं संखेजपएसियाणं असंखेजपएसियाणं, अणंतपदेसियाणं, खंधाणं सेयाणय णिरेयाणय दवट्टयाए पएसट्ठयाए दवट्ठपएसट्टयाए कयरे २ जाव विसेसाहियावा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा अणंत
पदेसिया खंधा णिरेया दबट्ठयाए अणंतपदेसिया खंधा सेया दवट्ठयाए अणंतगुणा, भावार्थ
विशेषाधिक है ? अहो गौसम ! सब से थोडे कंपन स्वाववाले परमाणु परल इस से स्थिर असंख्यातगुने. ऐसे ही असंख्यात प्रदेशिक स्कंध पर्यंत कहना. अहो भगवन् : कंपन व स्थिर स्वभावाले अनंत प्रदेशिक
स्कंध में कौन अस्प बहुत यावत् विशेषाधिक हैं ? अहो गौतम! सबसे थोडे स्थिर अनंत प्रदेशिक स्कंध इस Eसे कंपन स्वभाववाले अनंतगुने ॥३७॥ अहो भगवन्! इन कंपन व स्थिर स्वभाववाले परमाणुपुद्गल, संख्यात
प्रदेशिक स्कंध, असंख्यात प्रदेशिक स्कंध व अनंत प्रदेशिक स्कंध में द्रव्य से, प्रदेश से व द्रव्य प्रदेश से के.न किस से अल्प बहुत यावत् विशेषाधिक हैं ? अहो गौतम ! सब से थोटे द्रव्य से अनंत प्रदेशिक .
१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
.महाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवनहायजी मालाप्रसादजी.