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प्रकाशक-राजाब
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषनी +
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गोयमा ! सन्वर ॥ परमाणु पोग्गलाणं भंते । जिरेया कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सव्वद्ध ॥ एवं जाव अणंतपदेसिया ॥ ३५ ॥ परमाणु पोग्गलस्सणं भंते ! सेयस्स केवइयं कालं अंतर होइ ? गोयमा ! सट्ठाणंतरं पडुच जहण्णेणं एक समयं उक्कोसेणं असंखजइकालं ॥ परट्ठाणंतरं पडुच्च जहण्णेणं एक समयं, उकोसणं असंखेजइकालं गिरेयस्स केवइयं कालं अंतर होइ ? गोयमा ! सट्टाणंतरं पडुच्च जहण्णेणं एक समयं उक्कोसणं आवलिआए असंखेजइ भागं परट्ठाणतरं
पडुच्च जहण्णेणं एक समयं, उक्कोसणं असंखेज्जइ कालं ॥ ॥ दुपदेसियस्सणं भंते ! गौतम ! सब काल तक रहे. ऐसे ही अनंत प्रदेशिक स्कंध पर्यंत कहना. ॥ ३५॥ अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल के कंपन का कितना अंतर कहा ? अहो गौतम ! स्वस्थान आश्री जघन्य एक समय उत्कृष्ट असंख्यात काल, पर स्थान आश्री, नघन्य एक समय उत्कृष्ट अख्यिात काल. अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल में स्थिरपने का कितना अंतर कहा ? अहो गौतम ! स्वस्यानंतर आश्री जघन्य एक समय उत्कृष्ट भावलिका का असंख्यातवा भाग परस्थानांतर आश्री जघन्य एक समय उत्कृष्ट असंख्यात काल द्विपदेशिक स्कंध की पृच्छा, महो मौतम ! स्वस्थानंतर आश्री जघन्य एक समय उत्कृष्ट असंख्यात काला
भावार्थ
र लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *