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सूत्र
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सिय सेए सिय णिरेए ॥ एवं जाव अणंत पदेसिए ॥ परमाणु पोग्गलाणं भंते ! कि सेया णिरेया ? गोयमा ! सेयावि णिरेयावि ॥ एवं जाव अणंतपदेसिया ॥ ३५ ॥ परमाणु पोग्गलेणं भंते ! सेए कालओ केवेचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं एक समयं उक्कोसणं आवलियाए असंखेजइभागं ॥ परमाणु पोग्गलेणं भंते ! गिरेए कालओ केवीचरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं असंखेनं कालं
एवं जाव अणंत परसिए ॥ परमाणु पोग्गलाणं भंते ! सेया कालओ केवचिरं होइ ? भावार्थ: स्यात् स्थिर है. ऐसे ही अनंत प्रदेशिक स्कंध पर्यंत कहना. बहुत परमाणु पुद्गल क्या कंपन सहित हैं ।
या कंपन रहित हैं ? अहो गौतम ! कंपन सहित व स्थिर दोनों प्रकार के हैं ऐसे ही अनंत प्रदेशिक al स्कंध पर्यंत कहना. ॥ ३५ ॥ अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल कितना काल तक कंपन सहित रहे ? अहो । गौतम : जघन्य एक समय उत्कृष्ट आवलिका का असंख्यातवा भाग . अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल कितना काल तक स्थिर रहे ? अहो गौतम ! जघन्य एक समय उत्कृष्ट असंख्यात काल, ऐसे ही अनंत प्रदेशिक स्कंध पर्यंत कहना. अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गलों कितना काल तक कंपन सहित रहे ? अहो गौतम ! सब काल पर्यंत रहे. अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल कितने काल पर्यंत स्थिर रहे ? अहो ।
पंचमांग विवाह पण्णति (भगवती) सूत्र
8+ पच्चीसवा शतकका चौथा उद्देशा