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.43 पंचपदेसिए ॥ जहा तिपदेसिए छप्पएसिए जहा दुपदेसिए ॥ सत्तपएसिए जहा
तिपदेसिए ॥ अटुपदेसिए जहा दुपदसिए ॥ णवपदोसए जहा तिपदेसिए ॥ दस पएसिए जहा दुपदेसिए ॥ संखेज पएसिएणं भंते ! खंधे पुच्छा ? गोयमा ! सिय सअड्डे सिय अणद्वे, एवं असंखेज पएसिएवि ॥ एवं अणंत पदेसिएवि ॥ परमाणु पोग्गलाणं भंते ! किं सअड्डा अणड्ढा ? गोयमा ! सअड्ढावा अणड्ढावा, एवं जाव
अणंत पदेसिया ॥ ३४ ॥ परमाणु पोग्गलेणं भंते ! किं सेए गिरेए ? गोयमा !
है. द्विप्रदेशिक स्कंध की पृच्छा, अहो गौतम ! सार्ध है परंतु अनर्ध नहीं है. तीन प्रदेश का भावार्थ परमाणु -पुद्गल जैसे कहना चार प्रदेशी का द्विप्रदेशी स्कंध जैसे कहना, पाच,सात व नव प्रदेशिक का परमाणु
पुद्गल जैसे कहना. और छ, आठ, व दश प्रदेशिक का दो प्रदेशिक जैसे कहना. अहो भगवन् : संख्यात, प्रदेशिक की पुच्छा, अहो गौतम ! स्यात् सार्ध स्यात् अनर्ध ऐसे ही असंख्यात प्रदेशिक व अनंत प्रदेशिक का जानना. अहो भगवन् ! बहुत परमाणु पुद्गल क्या सार्ध या अनर्थ है ? अहो गौतम ! समसंख्या वाला सार्ध व विषम संख्यावाला अनर्ध है. ऐसे ही अनंत प्रदेशिक स्कंध जैसे कहना. ॥ ३४ ॥ अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल क्या कंपन सहित है या स्थिर हैं ? अहो गौतम ! स्यात् कंपन सहित व
मुनि श्री अमोलक ऋपिजी अनुवादक-बालब्रह्मचारी
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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