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4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋणीजी
कङजुम्म समयट्टिईए पुच्छा ? गोयमा ! सिय कडजुम्म समयट्टिईए जाव कलिओग समयाठईए।। एवं जावअणंतपएसिए।परम णु पोग्गलाणं किं कडजुम्मा पुच्छा!गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्म समयट्रिईया जाव सिय कलिओग समयट्रिईया ॥ विहाणादेसेणं कडजुम्म समयट्ठिईयात्रि जाव कलिओग समयट्रिइयावि ॥ एवं आव अणंतपएसिया ॥ ३१ ॥ परमाणु पोग्गलाणं भंते ! कालवण्णपज्जवेहिं किं कडजुम्मे ते
ओगे जहा ट्ठिईए बत्तव्वया एवं वण्णेमुवि सन्वेसु ॥ गंधेसुवि एवं चेव ।। रसेसुवि जाव अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल क्या कृतयुग्म समय की स्थिति पाले हैं. पृच्छा, अहो गौतम ! स्यात् कनयुग्म समय की स्थिति वाले यावत् स्यात् कलियुग्म समय की स्थिति वाले ऐसे ही अनंत प्रदेशिक स्कंध जैसे कहना. अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल क्या कृतयुग्म वगैरह पृच्छा, अहो गौतम ! सामान्य मे स्यात् कृतयुग्म समय की स्थिति वाले यावत् स्यात् कलियुग्म समय की स्थिति वाले और विधानादेश से स्यात् कृतयुग्म समय की स्थिति वाले यावत् कलियुग्म समय की स्थिति वाले ऐसे ही प्रांत प्रदेशिक ध पर्यंत कहना. ॥ ३१ ॥ अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल कालापर्ण पर्यव से क्या कृतयुम्म है ध्यान वगैरा जैसे स्थिति की वक्तव्यता कही वैसे ही सब वर्ण में, सब गंध व रस में मधूर रस पर्यंत कहना.1
.प्रकाशक-राजाबहर लाला मुबहेव महायजो चायप्रसादजी.
वार्थ
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