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॥ द्वितीयं शतकम् ॥
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*8808 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 2280
उ. उश्वास खं० खदक पु० पृथ्वो इं० इंन्द्रिय अ० अन्यतीर्थिक भा० भाषा दे० देव च० चमर चंचा स० समय ख० क्षेत्र अ० अस्ति काय बी० दुसरे शतक में ॥ * ॥ ते. उस काल तं० उम समय में
ऊसास खदए रिय । पुढावादय अण्णउत्थिभासाय । देवाय चमरचचा । समय खित्तत्थिकाय बीयसए ॥ १ ॥ * ॥ तेणं कालणं, तेणं समएणं, रायागहे नाम प्रथम शतक के अंतम जीवों का उत्पन्न होन का व चवन का विरह कहा. अब दूसरे शतक में उत्पन्न व चवन के मध्य का श्वासोश्वास का प्रश्न चलता है. इस शतक के सब मीलकर दश उद्दशे हैं. पहिले उद्देशे उश्वास व खंदक का अधिकार है, दूसरे में पृथिवी का अधिकारहै. तीसरे में इन्द्रिय का अधिकार है, चौथे में अन्य नीर्थियों का अधिकार है, पांचवे में भाषा का अधिकार है, छठे में देव का अधिकार, सातव में चमर चंचाका अधिकार, आठवे में समय क्षेत्र सो अढाइ द्वीप का अधिकार, नवरे में क्षेत्राधिकार oe
और दशवे में अस्तिकाया का स्वरूप ॥*।। उस काल सो चौये आरे में उप समय सो महावीर स्वामी विचरने के समय में राजगृही नामक नगर अत्यंत सुशोभित था. उस का वर्णन उववाइ सूत्र में जैसा चंपा नगरी का वर्णन किया है वैसा जानना. राजगृही कं गुणशील नामक उद्यान में श्री श्रमण भगवन्त
दुसरा शतकका पहिला उद्देशा
भाव