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शब्दार्थ
भावार्थ
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ऐसा व० चवने का प० पदं भा० कहना नि० निर्विशेष स० वह ए० ऐमा भं० भगवन् जा० यावत् वि० विचरते हैं. ॥ १ ॥ १० ॥
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49 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी
त्ता, एवं वक्कंती पयं भाणियव्वं निरवसेसं । सेवं भंते भंतेत्ति जाव विहरइ ॥ पढमसए
दसमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १ ॥ १० ॥
पढमसयं सम्मतं ॥ १ ॥
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अहो भगवन् ! जो आपने फरमाया वह वैसा ही है, अन्यथा नहीं है. ऐसा कह कर तप व समय से आस्मा को भावते हुवे श्री गौतम स्वामी विचरने लगे. यह प्रथम शतक का दशवा उद्देशा समाप्त हुवा. और प्रथम शतक भी समाप्त हुवा || १ || १० ॥ १ ॥
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* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहाय जी ज्वालाप्रसादजी *
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