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________________ 488> विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र *38 भावार्थ एक जी. जीव ए. एक स. समय में ए. एक किक्रिया प०करे स०स्वसमय व० व्यक्तव्यता ने जानना जा. यावत् इ० ईर्यापधिक सं० संपरायिकी ॥२॥ नि० नरकगति में भं भगवन् के. कितना काल वि० विरह उ० उत्पन्न हाने का प० प्ररूपा ज. जघन्य ए. एक समय उ० उत्कृष्ट वा० बारह मु• मुहूर्त ए. __ क्खामि ४ । एवं खलु एगे जीवे एगसमए एक किरियं पकरेइ, ससमयवत्तव्वयाए नेयव्वं ॥ जाव इरियावहियं संपराइयंवा ॥ २ ॥ निरयगईणं भंते ! केवइयं कालं । विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं एवं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुमात्र योग से होती है और सांपरायिक क्रिया योग व कषाय दोनों से होती है. जिस समय मांपरायिक क्रिया होती है उस समय ईर्यापथिक नहीं होती है, और जिस समय ईर्यापथिक होती है उस समय सांपरायिक नहीं होती है, वगैरह उक्त प्रकार से जिन शासन के कथनानुसार कहना. ॥ २ ॥ यहां ME क्रिया कही; क्रियावंत पुरुष की उत्पत्ति होती है इसलिये उत्पात विरहका प्रश्न पूछते हैं. अहो भगवन ! नरक में उत्पन्न होने का विरह कितना कहा ? अहो गौतम ! जघन्य एक समय उत्कृष्ट बारह मुहूर्त. इस 60 की सब वक्तव्यता पन्नवणाजी सूत्र के छठे पद जैसे कहना. तियेच पंचेन्द्रिय, मनुष्य व देवता में उत्कृष्ट बारह मुहूर्त का विरह. इस प्रकार चवन का विरह जानना. एक समय में जघन्य एक, दो, तीन का उत्पन्न होना व चवना होता है उत्कृष्ट एक समय में संख्याते असंख्याते जानना. यों सब पनवणा सूत्र में जानना. पहिला शतकका दशवा उद्देशा
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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