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________________ शब्दाथ। सूत्र 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी स०.संपरायिकी प० करते 30 ईर्यापथिक प. करे एक ऐसे ए० एक जीव ए०एक स. समय में दो कि क्रिया पं० करे तं० वह ज. जैसे इ० ईर्यापथिक सं० संपरायिकी. से. वह क० कैसे भं० भगवन् । गो० गौतम ज. जो अ० अन्यतीथिक एक ऐसा आ० कहते हैं जायावत् जे. जो ए. ऐसा आ०१३ कहते हैं मि. मिथ्या ते वे आ. कहते हैं अ० मैं पु० फीर गो० गौतम ए. ऐसा आ० करता हूं ए०१ तंसमयं संपराइयं पकरेइ, जंसमयं संपराइयं पकरेइ तंसमयं इरियावाहयं पकरेइ । इरियावहिय पकरणयाए संपराइयं पकरेइ, संपराइयंपकरणयाए इरियावहियं पकरेइ। एवं खलु एगे जीवे एगेण समएणं दो किरियाओ पकरेइ तंजहा-इरियावहियंच संपराइयच ॥ सेकहमेयं भंते एवं ? गोयमा ! जण्णंते अण्णउत्थिया एवमाइक्खंति तं चेव जाव जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु ॥ अहं पुण गोयमा ! एव माइक्रिया करता है उस समय में ईर्यापथिक क्रिया करता है सांपरायिक करते क्रिया ईर्यापथिक क्रिया करता और ईर्यापथिक क्रिया करते सांपरायिक क्रिया करता है इस तरह ईर्यापथिक व साम्परायिक ऐसी नों क्रियाओं जीव एक समय में करता है तब अटो भगवन ! यह कथन किस प्रकार है ? अहो तम ! अन्य तीकि जो इस प्रकार कहते है वह मिथ्या है अर्थात् उसका कथन मिथ्या है. मैं ऐसा कहता हूं यावत् प्ररूपता हूं कि एक समय में जीव एक ही क्रिया करता है क्यों कि ईर्यापथिक क्रिया * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* भावार्थ maaamwM
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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