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________________ शब्दार्थ | सूत्र भावार्थ पुद्रल में अ ० है ० स्निग्धपना ॥ १ ॥ अ० अन्यतीर्थिक ए० ऐसा आ० कहते हैं जा ० यावत् ए० एक जी० जीव ए० एक स० समय में दो दो क्रिया प० करे इ० ईर्यापथिक सं० संपरायिकी जं० जिस स० समय में इ० ईर्यापथिक प० करे तं० उस स० समय में सं० संपरायिकी पर करे जं जिम स० समय में सं० संपरायिकी प० करे तं० उस स० समय में इ० ईग्रपथिक प० करें इं० ईर्यापथिक प० करते संभ संपरायिकी प० परे पुव्विं किरिया अदुक्खा जहा भासा तहा भाणियव्त्रा, किरियाव जाव करणओणं सादुक्खा नो खलुसा अकरणओ दुक्खा, सेवं वत्तव्यं सिया, किच्चं दुक्खं, फुलं दुक्ख, कज्जमाणकडं दुक्खं कट्टु कट्टु पाणभूयजीवसत्ता वेदणं वेदति त्ति वत्तव्वं सिया || १ || अण्णउत्थियाणं भंते ! एवमाइक्वंति आव एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेइ तंजहा - इरियावहियंच, संपराइयंच, जं समयं इरियावहियं पकरेइ देनेवाली होती हैं शेष सब अधिकार भाषा जैसे कहना यावत् करण से दुःख परंतु अकरण से दुःख नहीं {है. किया हुवा दुःख है, स्पर्शा हुवा दुःख है. करने लगा किया वहीं दुःख करके प्राण भूत जीव व सत्व वेदना वेदते हैं यह चारों प्रश्नों का उत्तर हुवा || १ || अहो भगवन् ! अन्य तीर्थिक ऐसा कहते हैं कि एक समय में ईर्यापथिक व सांपरायिक ऐसी दो क्रियाओं जीव करता है, जिस समय में जीव ईर्यापथिक क्रिया करता है उस समय में ही सांपरायिक क्रिया करता है और जिस समय में सांपरायिक पंच हिवत्रपण्णाति ( भगवती ) सूत्र 4 पहिला शतक का दशवा उद्देशा 490 २४५
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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