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________________ सूत्र भावार्थ ० अनुवादक- बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी परिमंडल संद्वाणे जवमज्झे तत्थणं परिमंडल संद्वाणा किं संखेज्जापुच्छा ? गोयमा ! संखेजा णी असंखेज्जा, अणंता ॥ वाणं भंते ! संद्वाणा किं संखेज्जा एवं चैव ॥ एवं जाव आया ! जत्थणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए एगे वहसंद्वाणे जनमज्झे तत्थणं परिमंडल संद्वाणा किं संखेज्जा पुच्छा ? गायमा ! णो संखेजाणो असंखज्जा अनंता ॥ वाणा एवं चैव ॥ एवं जाब आयता || एवं पुणरवि एक्केक संद्वाणेणं पंच विचारयन्वा जब हेट्ठिला जाब आयतेणं ॥ एवं जाव अहं सत्तमाए ॥ एवं कप्पेब जाव 'ईसिपसारा पुढबीए 11 ७ ॥ वट्टेणं भंते ! संद्वाणे कइपएसिए कइपए सोगाढे पण्णत्ते ? गोयमा ! वह संद्वाणे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - वणवद्वेय संख्यात, असंख्यात या अनंत हैं ? अहो गौतम ! संख्यात असंख्यात नहीं हैं परंतु अनंत हैं. ऐसे ही वृत्त यावत् आयत पर्यंत जानना. अहो भगवन् ! इन रत्नप्रभा पृथ्वी में वृत्त संस्थानवाला यवमध्य में परिमंडल संस्थान क्या संख्यात, असंख्यात या अनंत हैं ? अहो गौतम ! संख्यात असंख्यात नहीं हैं परंतु अनंत हैं, वृत्त यावत् जायत संस्थान का ऐसे ही जानना. एक संस्थान में पांच २ बोल कहना. ऐसे ही सातवी तमतमा पृथ्वी तक सब देवलोक यावत् ईषत्प्राग्भार पृथ्वी पर्यंत जानना ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! वृत्त संस्थान कितने प्रदेशवाला व कितने प्रदेशावग्राही है ! अहो मौतम! संस्थान के दो भेद कहे * प्रकाशक- राजबहादुर लाला सुखदेवसहायजी जालाप्रमादजी * २७१२
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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