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________________ - पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र एवं आयता एवं जावं अहे सत्तमाए सोहम्मेणं भंते ! कप्पे परिमंडल. संट्ठाणा एवंचेव ॥ एवं जाव अच्चुए ॥ गेवेजगविमाणाणं भंते ! परिमंडल संट्राणा? एवंचव एवं अणुत्तर विमाणेसुवि ॥ एवं ईसिप्पभाराएवि ॥ ५॥ *२७११ जत्थणं भंते ! एगे परिमंडल संढाणे जवमझे तत्थ परिमंडल संट्राणा किं संखेजा असंखेज्जा अणंता ? गोयमा ! णो संखेजा णो असंखेज़ा अणंता॥ वटाणं भंते ! संट्राणा किं संखजा असंखेजा अणंता ? एवंचव ॥ एवं जाव आयता। जत्थणं भंते! एगेवढे संठाणे जवमज्झ तत्थ परिमंडल संठाणा एवंचव एवं जाव आयता एवं एकेकं संट्राणेणं पंच विचारयव्वा ॥ ६ ॥ जत्थणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए एगे ऐसे ही वृत्त यानत् आयत पर्यंत जानना. ऐसे ही शर्करप्रभा पृथ्वी यावत् सातवी तमतमा पृथ्वी, सौधर्म देवलोक यावत अच्युत देवलोक, ग्रैवेयक, अनुत्तर विमान व ईषत्माग्भार पृथ्वी में ऐसे ही कहना. ॥५॥ अहो भगवन् ! एक परिमंडल संस्थान वाला यवमध्य में परिमंडल संस्थान क्या संख्यात, असंख्यात या अनंत हैं ? अहो गौतम ! संख्यात . असंख्यात नहीं हैं परंतु अनंत परिमंडल संस्थान हैं.3% मे ही वृत्त यावत् आयत का जानना. ऐसे ही एक २ संस्थान में पांच २ बोल विचारना ॥६॥ 1ो भगवन् ! इम रत्नप्रभा पृथ्वी में एक परिमंडल संस्थानवाला व मध्य में क्या परिमंडल संस्थान । ११ पञ्चीसवा शंतक को तीसरा उद्देशान HIC ।
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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