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________________ AIAAAAAARL 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - 'त्यत्था संढाणा पदेसट्टयाए असंखेजगुणा ॥ ३ ॥ कइणं भंते ! संढाणा पण्णता ? गोयमा ! पंच संढाणा पण्णत्ता तंजहा परिमंडले जाव आयते ॥ परिमंडलाणं भते ! संढाणा किं संखेज्जा असंखज्जा अणंता ? गोयमा ! णो संखेजा णो असंखज्जा अणंता वटाणं भंते ! संढाणा किं संखजा ? एवंचव ॥ एवं जाव आयता ॥ ४ ॥ इमीसेणं भंते ! रयणप्पभाएपुढवीए परिमंडल संढाणा किं संखज्जा असंखेजा अणंता ? गोयमा! णो संखजा णो असंखेजा अगंता ॥ वाण भंते ! संढाणा किं संखजा असंखज्जा एवंचेव ॥एवं जाव आयता ॥ स्करप्पभाएणं भंते ! पुढवीए परिमंडल संढाणा एवंचेव प्रदेश आश्री असंख्यात गुने, इस से वृत्त संस्थान प्रदेश आश्री संख्यात गुने, यावत् अनित्थस्थ संस्थान । प्रदेश आश्री असंख्यान गुने. ॥ ३ ॥ अहो भगवन् : संस्थान के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! - संस्थान पांच कहे हैं. जिनके नाम परिमंदल यावत् आयत. अहो भगवन ! परिमंडल संस्थान क्या संख्यातं हैं, असंख्यात हैं या अनंत हैं ? अहो गौतम ! संख्यात असंख्यात नहीं है परंतु अनंत हैं. ऐसे ही वृत्त यावत् आयत पर्यंत कहना. ॥ ४ ॥ अहो भगवन ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में परिमंडल संस्थान क्या संख्यात असंख्यात या अनंत हैं ? अहो गौतम ! संख्यात असंख्यात नहीं हैं. परंतु अनंत हैं.. • प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावार्य
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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