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शब्दार्थ
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पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र
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कहता हूँच चलते को च चला जायावत नि:निर्जरते को नि:निर्जरादोदाय परमाणु पुद्गल ए० एकत्रित
साहणंति? दोण्हं परमाणु पोग्गलाणं अस्थि सिणेहकाए तम्हा दो परमाणु पोग्गला एगयओ साहणंति तेभिजमाणा दुहा कजंति, दुहा कजमणा एगयओवि परमाणु पोग्गले एगय
ओ परमाणु पोग्गले भवइ, तिाण परमाणु पोग्गला एगयओ साहणंति, कम्हा तिणि परमाणु पोग्गला एगयओ साहणंति?तिण्हं परमाणु पोग्गलाणं अत्थि सिह काए तम्हा तिण्णि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति, ते भिजमाणा दहावि तिहावि कजं
ति, दुहा कज्जमाणा एगयओ परमाणु पोग्गले एगयओ दु पदेसिए खंधे भवइ, तिहा निर्भरने लगे को निर्जरे कहना. और भी दो परमाणु पुद्गल एकत्रित होकर स्कंध रूप वनजाते हैं क्यों की उस में स्नेह का गुण रहा हुवा है. एक परमाणु में शीत, उष्ण, स्निग्य व रुक्ष ऐमे चार स्पर्श में विरोधी दो स्पर्श पाते हैं. इसलिये दो परमाणु में स्निग्धता होने से एकत्रित मीलकर स्कन्ध रूप बन जाते हैं. वैसे ही दो परमाणु को पृथक् करने से उस के एक २ परमाणु के दो विभाग होसकते हैं, वैसे 30 ही तीन परमाणु मीलकर भी स्निग्धता के कारण से स्कन्ध होता है. उस का यदि भेद किया जाये तो दो व तीन होसकते हैं. दो में एक परमाणु का एक विभाग और द्विपदेशी स्कन्ध का दूसरा विभाग, तीन विभाग एक २ परमाणु प्रथक २ होजाने से होते हैं, ऐसे ही तीन चार पांच आदि परमाणु गशिका
पहिला शतक का दशवा उद्देशा
भावार्थ
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