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.48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
ढिई जहण्णेणं पलिओवमं वाससयसहस्स मभहियं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओमाई, एवं अणुबंधोवि,कालादेसं जहण्णेणं दोपलिओवमाइं दोहिवाससयसहस्सेहिं अब्महियाई, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाइं, वाससयसहस्समब्भहियाई ३॥ सोचेव अप्पण्णा जहष्ण कालट्ठिईओ जाओ ? गोयमा ! जहणेणं अट्ठभागपलिओवमट्टिईएसु उक्कोसेणवि अट्ठभागपलिओवमट्ठि?एसु उववजेज्जा ॥ तेणं भंते ! जीवा एगसमए एस
चेव वत्तव्वया णवरं ओगाहणा, जहण्णेणं धणुह पुहृत्तं उक्कोसेणं सातिरेगाइं अट्ठारस धणुहसयाइं ॥ ढिई जहणणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणवि अट्ठभागपलिओवमं दो लाख वर्ष अधिक उत्कृष्ट तीन पल्योपम एक लाख वर्ष अधिक ( तीन पल्य तिर्यंच या युगलिये के और एक पल्य एक लाख वर्ष ज्योतिषी के ) वही जघन्य स्थिति वाला जघन्य उत्कृष्ट पल्योपम का आठवा भाग की स्थिति में उत्पन्न होवे. और सब वक्तव्यता वैसे ही कहना; परंतु अवगाहना जघन्य प्रत्येक धनुष्य उत्कृष्ट कुच्छ अधिक अठारह धनुष्य स्थिति जघन्य उत्कृष्ट पल्योपमका आठवा भाग ऐसे ही अनुबंध शेष वैसे ही कालादेश मे जघन्य उत्कृष्ट पल्योपम के दो आठ भाग. जघन्य स्थिति का यह एक ही गमा होता है । शेष दो गमे नहीं होते हैं. वही उत्कृष्ट स्थिति वाला उत्पन्न हुवा सब औधिक की वक्तव्यता कहना. परंतु
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *