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शब्दाथ
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
सदाकाल उ० चयपामे अ० अपचयपामे प. पहिले भा० भाषा श. भाषा भा० बोलाती हइ भा० भाषा अ० अभाषा भा० भाषा समय वि० व्यतीत हुवा भा० बोली हुइ भा० भाषा अ. अभाषा भा० भाषा समय वि० व्यतीत हुवा भा० बोलीहुइ भा० भाषा किं. क्या भा० भाषक को भा० भाषा अ० अभाषक भा० भाषा णो नहीं सा वह भा० भाषक को भा० भाषा पु० पहिली कि० क्रिया दु. दुःख क० करते। कि क्रिया अ० अदःख कि क्रिया स० समय वी० व्यतीत हवे क० कीहुइ कि० किया दु० दुःख
पोग्गला एगयओ साहणंति, एगयओ साहणित्ता दुक्खत्ताए कजंति, दुक्खेवियणं सेसासए सयासमियं उवचिजइयं अवचिजइयं, पाल्वं भासा भासा, भासिज्जमाणी भासाअभासा, भासासमयवितिकतंचणं भासिया भासा, जा सा पुव्वं भासा भासाभासि
जमाणी भासा अभासा, भासा समयवितिकंतंचणं भासियाभासा सा किं भासओ दुःख रूप ( कर्म पने ) परिणमते हैं. कर्म अनादि होने से वह दुःख भी शाश्वत होता है. वह सदैव सम्यक् प्रकार से चय उपचय-हानि वृद्धि को प्राप्त होता रहता है. और भी वे अन्य तीर्थिक कहते हैं कि पहिले बोलाइ हुई प्रथम की भाषा को भाषा कहनाः परंतु वर्तमान में बोलाती हुई भाषा को भाषा कहना नहीं, भाषा का समय अतिक्रान्त हुवे पीछे भाषा को भाषा कहना. और जब बोलाइ हुई प्रथम , की भाषा को भाषा कहना, बोलाती हुई भाषा को अभाषा कहना, और भाषा समय व्यतीत हुए पीछे
प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ