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शब्दार्थ *
बालक वा बालपना अ० अशाश्वत सा० शाश्वत पं० पंडित पं० पंडितपना अ अशाश्वत ६० हां गो० ॐ गौतम अ० अस्थिर प० परिवर्तन होवे जा० यावत् पं० पंडितपना अ० अशाश्वत स० वह ए० ऐसा ० मं० भगवन् जा० यावत् वि० विचरते हैं ॥ १ ॥ १ ॥
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सूत्र
भावार्थ |
पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
असासयं सासए पंडिए पांडयत्तं असासयं ? हंता गोयमा ! अथिरे पलोहइ जाव पंडियत्तं अलासयं सेवं भंते संतेत्ति जाव विहरइ || पढमेसए नवमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १ ॥ ९ ॥
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पहिला शतक का नववा उद्देशा
अस्थिर भेद्य स्वभाव वाले हैं आध्यात्म चिन्ता में अस्थिर कर्म भेदावे, लोहकी शलाका अभेद्य स्वभाव वाली है और शाश्वतपना से जीव के टुकडे होवे नहीं. व्यवहार से बालक शाश्वत है और निश्चय से जीव शाश्वत व्यवहार से बालक भाव अशाश्वत निश्चय से अत्यंत भाव अशाश्वत, निश्चय से पंडित तत्र { के जान- शाश्वत, व्यवहार से संयती जीव शाश्वत व्यवहार से पंडितपना अशाश्वत और निश्चय से संयत २० भाव अशाश्वत होवे. अहो भगवन् ! आपने कहा वह सब सत्य है अन्यथा नहीं है ऐसा कहकर वंदना नम( स्ककार कर श्री गौतम स्वामी संयम व तप से आत्मा को भागते हुये विचरने लगे. यह पहिला शतक का नववा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ १ ॥ ९ ॥
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