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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी *
पच्छिल्लएसु तिसु गमएसु जहण्णेणे दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणे चत्तारि भवग्गहणाई लही,णवसुवि गमएसु जहा पढमगमएसु,णवरं ट्ठिईविससो, कालादेसेणं विइयगमए जहण्णेणं वावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्त मन्भहियाइं. उक्कोसेणं छावर्द्धि सागरोवमाइं तिहिं. अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं ॥ तइयगमए जहण्णेणं वावीसं सागरोवमाई पुवकोडीए अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावढेि सागरोवमाई तिहिं पुवकोडीहिं अब्भहियाइं । ३ । चउत्थगमए जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं छाबढेि सागरोवमाइं तिहिं पुवकोडीहिं अब्भहियाइं । ४ । पंचमगमए जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्त मन्भहियाई, उक्कोसेणं छावढेि सागरोनमाइं भव उत्कृष्ट छ भव. और पीछे के तीनों गमा में जघन्य दो भव उत्कृष्ट चार भव. नवों गमा में लब्धि पहिले गमा जैसे कहना. परंतु स्थिति में विशेषता जानना. कालादेशसे दूसरा गमा में जघन्य बावीस सागरोपमा अंतर्मुहूर्न अधिक उत्कृष्ट छासठ सागरोपम तीन अंतर्मुहूर्त अधिक. तीसरा गमा में जघन्य बावीस सागरोपमपूर्व क्रोड अधिक उत्कृष्ट छासठ सागरोपम तीन पूर्व क्रोड अधिक. चौथा गमा में जघन्य बावीस सागरोपम अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट छासठ सागरोपम तीन पूर्व क्रोड अधिक पांचवा गमा में जघन्य बाबीस सागरो
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
भावाथ