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________________ - 390 २६३१ पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवति) सूत्र तिहिं अंतोमुहुत्तेहिं: अब्भहियाइं । ५ । छट्ठ गमए जहण्णेणं बावीसं सागरोधमाई पुवकोडीहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावहिँ सागरोवमाइं तिहिं पुन्चकोडीहिं अब्भहियाइं । ६ । सत्तमगमए जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं, अंतोमुहत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं छावटैि सागरोवमाई दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अन्भहियाई । ७ । अट्रभगमए जहणणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमभहियाई, उक्कोसेणं छावष्टुिं सागरोवमाई दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई । ८ । णवमगमए जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं, पुवकोडीए अन्भहियाई, उक्कोसेणं छावढेि सागरोवमाइं एवइयं जाव करेजा ॥ ४ ॥ जइ तिरिक्खीणएहितो उववजंति किं एगिदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति.. पम और अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट छासठ सागरोपम तीन अंतर्मुहूर्त अधिक, छठा गमा में जघन्य बावीस सागरोपम पूर्व क्रोड अधिक उत्कृष्ट छासठ सागरोपम तीन पूर्व क्रोड अधिक. सातवा गमा में जघन्य तेतीस सागरोपम अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट छासठ सागरोपम दो अंतर्मुहूर्त अधिक. आठवागमा में जघन्य तेत्तीस , सागरोपम अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट छासठसागरोपम और दो अंतर्मुहूर्त अधिक. और नववा गमा में जघन्य तेत्तीस * सागरोपम और पूर्व क्रोड अधिक उत्कृष्ट छासठ सागरोपम.दो अंतर्मुहूर्त अधिक इतना यावत् गति आगति करे॥४॥ यदि तिर्यंच में से उत्पन्न होवे तो क्या एकन्द्रिय में से उत्पन्न होवे ऐसे ही पृथ्वीकाया के उपपात जैसे चौबीसवा शतक की बीसवा उद्देशा भावार्थ *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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