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सूत्र
भावार्थ
438+ पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 48
अण्णाणा नियम, द्विति अणुबंधीय पुण्त्रभणिया एवं णवगमगा उवउंजिऊण भाणियन्त्रा एवं जाव छट्टपुढवी नवरं ओगाहणा, लेस्सा, द्विती, अणुबंधो, संवेहो, जाणियव्वा ॥ अहे सत्तमा पुढवी रइएणं भंते! जे भविए एवंचेत्र णवगमगा णवरं ओगाहणा लेस्सा द्विती अनुबंधा भाणियव्वा || संवेहो भवादेसेणं जहण्णेणं दो भदग्गहणाई, उक्कोसेणं छ भत्रग्गहणाई; कालादेसेणं जहणेणं बाबीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्त मब्भहियाइं, उक्कोसेणं छाबट्ठि सागरोवमाई तिहिं पुत्रकोडीहिं अव्भहियाई, एवइयं अदिल .सु छ गमएसु जहणेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं छ भवग्गहणाई || छठी तमा पृथ्वी पर्यंत कहना. परंतु अवगाहना, लेश्या, स्थिति अनुबंध व संबंध उसकेही अनुसार जानना. नीचे की सातवी पृथ्वी के नारकी के नव गया बैसे ही कहना. परंतु अवगाहना, लेश्या, स्थिति और { अनुबंध इस के ही कहना, संबंध भवादेश से जघन्य दो भव उत्कृष्ट छ भव. कालादेश से जघन्य बावीस सागरोपम अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट छासठ मागरोपम तीन पूर्व क्रोड अधिक * पहिले के छ गमा में जघन्य दो * यहां पर भव तथा काल के बहुत्व की विवक्षा नहीं की है. इस से जघन्य स्थितिवाले नारकी के तीन भव ग्रहण करने से छासठ सागरोषम हो और तियंच के तीन भव होने से तीन पूर्व क्रोड अधिक होवे,
40- चौबीसवा शतक का बीसवा उद्देशा 480*
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