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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पुढविकाइएस उववजंति, सेणं भंते ! केइवय कालरस ? गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वावसं वाससहस्सट्टिईएस || तेणं भंते! जीवा एवं जहेव रयणप्पभा उववज्जमाणस्स तहेव तिसुवि गमएस लडी, णवरं ओगाहणा जहणेणं अंगुल - स्स असंखेज्जइ भागं, उक्कोसेणं पंचधणुहसयाई । ट्ठिई जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्को - सेणं पुचकोडी, एवं अणुबंधोवि || संवेहो णवसु गमएस जहेब सणिपंचिंदिय मल्लितिस गमएसु लद्धी जहेब सणिपंचिंदियरस मज्झिल्लएसु तिसु गमएसु लडी से तंव णिरवसेसं ||च्छिल्ला तिणि गमका जहा एयरसचेव ओहिया गमका
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
{ पृथ्वीकाया में उत्पन्न होने योग्य होवे वे कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्त | उत्कृष्ट बाजीस हजार वर्ष. अहो भगवन् ! एक समय में वे जीवों कितने उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! { जैने रत्नप्रभा में उत्पन्न होने के तीन गया कहे वैसे ही यहां पर तीनों गया कहना. परंतु अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट पांचतो धनुष्य स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्व कोड ऐसे ही { अनुबंध कहना. संबंध नवीं गया में जैसे संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच का कहा था वैसे ही कहना. बीच के तीन गमा में संज्ञी तिर्यच पंचेन्द्रिय की लब्धि जैसे कहना, पीछे के तीन गमा इस के औधिक जैसे |
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