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पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
केवइय कालट्ठिईएमु एवं जहा असणिपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स जहण्ण कालट्टिईयस्स तिण्णि गमगा तहा एतस्सवि ओहिया तिण्णिगमका भाणियव्वा, तहेव गिरवसेसं सेसा छ ण भण्णइ ॥ २८ ॥ जइ सणि मणुम्सेहितो उववजंति. किं संखजवासाउय, असंखजवासाउय जाव उववजंति ? गोयमा ! संखजवासाउय णो असंखेजवासाउय जाव उववजंति ॥ जइ संखेजवासाउय जाव उववज्जति किं पजत्त संखेजवासाउय, अपज्जत्त संखेजवासाउय ? गोयमा ! पजत्त संखेजवासाउय
अपजत्त संखजवासा जाब उववज्जति ॥ २९ ॥ सण्णि मणुस्सेणं भंते ! जे भविए असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय जघन्य स्थितिवाले के तीन गमा कहे वैसे ही इस के औधिक तीनों गमा कहना और शेष छ भांगे नहीं पाते हैं ॥ २८ ॥ यदि संज्ञी मनुष्य में से उत्पन्न होवे तो क्या संख्यात वर्ष के आयुष्यवाले या असंख्यात वर्ष के आयुष्यवाले उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! संख्यात वर्ष के आयुष्यवाले उत्पन्न होते हैं परंतु असंख्यात वर्ष के आयुष्यवाले नहीं उत्पन्न होते हैं. यदि संख्यात वर्ष के आयुष्यवाले मनुष्य उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्त उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! पर्याप्त उत्पन्न होते हैं और अपर्याप्त भी उत्पन्न होते हैं ॥ २९ ॥ अहो भगवन ! संत्री मनुष्य है ।
चौबीसवा शतक का बारहवा उद्देशा 488
भावार्थ
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