SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2646
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क ऋषिजी - मिच्छट्ठिी ॥ दो अण्णाणा ॥ कायजोगी ॥ तिणि समुग्घाया ॥ टिई जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं नक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं । अप्पसत्था अज्झवसाणा ॥ अणुबंधो जहा ढिई सेसं तंचेव ॥ पच्छिलएसु तिसु गमएसु जहेव पढमगमए णवरं ठिई अणुबंधो जहाणेणं पुन्चकोडी उक्कोसेणवि पुवकोडी, सेस तंव ॥२६॥ जह मणुस्सेहिता उववजंति किं सण्णिमणुस्सेहिंतो उववजीत असण्णिमणुस्से. हिंतो उववज्जति ? गोयमा ! सण्णि मणुस्सेहिंतो उववजंति असण्णि मणुस्सेहितोवि ज्ववजंति ॥ २७ ॥ असणि मणुस्सेणं भंते ! जे भविए पुढवीकाइएसु सेणं भंते! दो अज्ञान, काया योगी, तीन समुदात, स्थिति जघन्य उत्कृष्ट अंगुल का असंख्यातवा भाग, अध्यवसाय अप्रशस्त और अनुबंध स्थिति जैसे. पीछे के तीनों गया पहिले के तीनों गया जैसे कहना. परंतु स्थिति में अनुबंध जघन्य पूर्व कोड उत्कृष्ट भी पूर्व क्रोड शेष सब पहिले जैसे ॥ २६ ॥ याद मनुष्य में से उत्पन्न हो तो क्या संशी मनुष्य में से उत्पन्न होवे या असंही मनुष्य में से उत्पन्न होवे ! अहो गौतम ! संजी मनुष्य में से उत्पन हो और असंही मनुष्य में से उत्पन्न होवे ॥ २७ ॥ अहो भगवन् ! असंधी. मनुष्य में से जो पृथ्वीकावा में उत्पा होने योग्य होरे वह कितनी स्थिति से उत्पन्न होने ! महो गौतम ! जैसे 42 अनुवादक-बालबाबरी मुनि श्री प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वालामसादजी . भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy