________________
+
.41 अनुवादक-वालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी
अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं अट्टासीति वाससहस्साई, चउहि अंतोमुहुत्तेहिं अब्भ ...हियाई ॥ २० ॥ सोचेव अप्पणा उक्कोसकालढ़िईओ जाओ एतस्सवि. ओहियागमग सरिसा तिणि गमगा भाणियव्वा गवरं तिसुवि गमएसु लिई जहण्णेण बारस संवच्छ
|२६१० राई, उक्कोसेणवि बारस संवच्छराई । एवं अणुबंधावि, भवावेसेणं जहण्णेणं दो "भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई, कालादेसेणं उवउंजिऊण भाणियत्वं जाव णवमेगमए जहण्णेणं वावीसं वाससहस्साई बारसहिं संवच्छरेहिं अन्भहियाई, उक्को.
सेणं अट्ठासीति वाससहस्साई अडयालीसाए संवच्छरेहिं अब्भहियाई, एवइयं ॥२१॥ है वैसे ही आठ भव. कालादेश से जघन्य बावीस हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट अठासी हजार वर्ष
और चार अंतर्मुहूर्त अधिक ॥ २० ॥ वही उस्कृष्ट स्थितियाला उत्पन्न हुवा औधिक गया जैसे तीनों गमा, कहना परंतु तीनों गमा में स्थिति जघन्य उत्कृष्ट बारह वर्ष ऐसे ही अमुबंध. भवादेश से जपन्य दोई भव उत्कृष्ट आठ भव. कालादेश उपयोग लगाकर अनुक्रम से काना. यावत् नववा गमा में जघन्य बावीस हजार वर्ष और बारह वर्ष अधिक उत्कृष्ट अठासी हजार वर्ष और अहतालीस वर्ष अधिक. इतना यावत् सबने करे ॥ २१ ॥ यदि तेइन्द्रिय में से उत्पन्न होवे सो पृथ्वीकाया में उत्पन्न होचे ऐसे ही नव गमा
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ