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+8+ पंचमात्र विवाह पग्णाति (भगवती ) मूत्र 428
सेयं जहष्णेयं वावीस वाससहस्साई अंतोमुहुत्त मभहियाई, उक्कोसेणं अट्ठासीति वाससहस्साई, बारसहिं राइदिएहिं अब्भहियाई, एवइयं एवं संवेहो उवउंजिऊण. भाणियच्चों ॥ १४ ॥ जइ वाउक्काइएहिंतो उववजंति, वाउकाइयाणवि एवंचे गव गमका जहेव तेउकाइयाणं णवरं पडागासंठिया, संबेहो वाससहस्सेहिं कायन्वो ॥ ततिषगमए कालादेसेणं जहण्णेणं वावीसं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमम्भाहियाई, उक्कोसेणं एग वाससयसहस्सं एवं संबेहो उवउंजिऊण भाणियन्वो ॥१५॥जइवणस्सइ
काइएहितो उववजति वणस्सइकाइयाणं आउकाइयगमग सरिसा णवगमगा भाणियन्या बावीस हमार वर्ष और अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट अठासी रमार वर्ष और पारस रात्रि दिन अधिक. संबंध भी उपपोग लगाकर काना ॥ १४ ॥ जैसे तेउकापा का कहा वैसे ही वायुकाया का जानना. परंतु, इस में पताका का संस्थान है एक हजार वर्ष का संबंध कहना. तीसरा गमा में कालादेश से जघन्य बावीस हजार वर्ष भंवर्मुहूर्त अधिक उस्कृष्ट एक लाख वर्ष (पृथ्वी काया के चार भव के ८८००० वर्ष और 4
वायुकाव के चार भनके १२००० वर्ष) इतना काल तक गतागत करे ऐसे मागे का भी आयोग सारखकर संबंध काना ॥ १५ ॥ पदि वनस्पनि.काया में से उत्पन्न होने तो बनस्पति काया का अपकाया ।
चोवीसवा शतक का बारहवा उद्देशा