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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
493 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
अ० परिभ्रमण से० वह के० कैसे जा० यावत् आ० आधाकर्मी भुं० भोगवता जा० यावत् अ० परिभ्रमण करे गो० गौतम आ० आधाकर्मी भुं० भोगवता आ० आत्मा से घ० धर्म अ० अतिक्रमे आआत्मा से ध० धर्म अ० अतिक्रमता पु० पृथ्वी कायाकी ण नहीं अ० अनुकंपाकरे जा० यावत् तत्रसकाया की ण०नहीं अ०
बढाओ धणिय बंधण बद्धाओ पकरेइ, जाव अणु परियहइ । से क्रेणट्टेणं जाव आह कम्मणं भुंजमाणे जाव अणुपरियहइ ? गोयमा ! आहाकम्मंणं भुंजमाणे आयाए धम्मं अइक्कमइ आयाए अक्कममाणे पुढविकायं णावकखइ जाव तसकायं णावकखइ, जेसिंपियणं जीवाणं
* पहिला शतक का नववा उद्देशा
[[ अनुभाग की अपेक्षा से ] और प्रदेश बंध की अपेक्षा से क्या उपाचने ! अहो गौतम ! आधाकर्मी आहार भोगनेवाला श्रमण निग्रंथ आयुष्य कर्म वर्जकर अन्य सात कर्म प्रकृतियों यदि शिथिल बंधनवाली. होवे तो दृढ बंधनवाली बनावे, अल्प काल की स्थितिवाली को दीर्घ काल की स्थितिवाली बनावे, ( यावत् अनंत कालतक चतुर्गति रूप संसार में परिभ्रमण करे. अहो भगवन् ! किस कारन से आधा [कर्मी भोगवनेवाला साधु सात कर्म प्रकृतियों को दृढ बंधनवाली बनावे यावत् चतुर्गतिक (परिभ्रमण करें ? अहो गौतम ! आधाकर्मी आहार भोगनेवाला आत्मासे धर्म अतिक्रमता है, धर्म अतिक्रमते पृथ्वीकायादि षटूकाया की अनुकम्पा रहित होता है और जिन जीवों के
संसार में
आत्मा से
शरीर का
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