________________
शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ !
९३ अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
सें० शेठ का जा० यावंत अ० अप्रत्याख्यान क्रिया क० कर से० वह के० कैसे भं० भगवन् गो० गौतम) अ० आवरात प० प्रत्यय ते० इसलिये गो० गौतम ए० ऐसा बु० कहा जाता है से० शेठ त० दरिद्री { जा० यावत् क करे ॥ १६ ॥ अ० आधाकर्मी भुं० भोगवता स० श्रमण निः निर्बंध किं० क्या बं० बांधे (प० करे चि० चिने उ० उपचिने गो० गौतम आ० आवाकर्मी भुं० भोगवता आ० आयुष्य व ० वर्जकर स० सात {क० कर्म प्रकृति लि० सिविल ० ० बंधी हुई ६० दृढ बं बंधन ब० बंधी हुई प० करे जा० यावत् किवणस्सय, खत्तियस्सय समाचैव अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ ? हंता गोयमा ! सेट्ठियरस जाव अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ । से केणटुणं भंते ? गोयमा ! अविरई पडुच्च, से तेणट्टेणं गोपना ! एवं द्विसाय तणु जव कजइ ॥ १६ ॥ आहाकम्र्म्मणं भुंजमाणे समणे निग्गंथे किं बंधइ. किंपकरेइ, किंचिणाइ, किंउवचिणाइ ? गोयमा ! आहाकम्मं भुंजमाणे आउययजाओ सत्तकम्म पगडीओ सिढिलबंधण अविरति प्रत्ययिक सब को एक सरिखी क्रिया लगती है. क्यों की इच्छा सब को एक मरिखी है; और उस की निवृत्ति किसी को नहीं हुई है इसलिये अहो गौतम ! ऐसा कहा गया है कि श्रेष्टी यावत् क्षत्रिय को एक सारखी अप्रत्याख्यान क्रिया लगती है || १६ || अहो भगवन् ! आधाकर्मी आहार भोगने[ स्थिति की अपेक्षा से ] क्या चिने
वाला साधु निग्रंथ क्या बांधे, [ प्रकृति की अपेक्षा से ] क्या करे,
२३२