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शब्दार्थ | ॐ आर आयकर च चरम उ० श्वासोश्वास मे सि० सिद्ध बु बुद्ध
मुक्त पत्र परिनिवृत्त सम
* दुःख मे प०मुक्त मं भगवन् निः ऐसा ॥ १० ॥ भ० भगवान् गो० गौतम स० भ्रमण भ० भगवान म० महावीर को बं० वंदना कर न० नमस्कार कर ए० ऐसा व वाले भं० भगवन् से० शेठ त० दरिद्री कि० रंक ख० क्षत्रिय स० सारखी अ अप्रत्याख्यान कि० क्रिया क० करे ६० हां० गो० गौतम अहियासिज्जइ; तम आहे आहेइत्ता चरमेहिं उस्सास नीसासेहिं सिद्धे बुद्धे मुत्ते परिनिल्युए सव्वदुक्खपहीणे संतति ॥ १५ ॥ भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बंदइ नमसइ वंदित्ता नमसइत्ता एवं वयासी सेणूणं भंते ! सेट्ठिस्सय तणुयरस,
सूत्र
भावार्थ
4848 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
पना, भूमिशैय्या, काष्टशैय्या केशलोचन, ब्रह्मचर्य, परघर प्रवेश, प्राप्ति अप्राप्ति, ऊंच नीच इन्द्रियों के समूह और बावीस परिषद के उपसर्ग सहन करते थे; उसे आराधकर चरम श्वास नीश्वास में सिद्ध बुद्ध यावत् सब दुःखों से रहित हुवे. अहो भगवन् ! यह आपका वचन सत्य है ।। १५ ।। क्रिया रहित होने से सिद्ध होते हैं इसलिये क्रिया का प्रश्न करते हैं. गौतम स्वामीने महावीर भगवंत को वंदना नमस्कार करके ऐसा प्रश्न किया कि अहो भगवन् ! श्रेष्टि, दरिद्री, कृपण व क्षत्रिय को क्या एक सारखी अप्रत्याख्यान क्रिया लगती है ? हां गौतम ! श्रेष्टि, दरिद्री, कृपण व क्षत्रिय को एक सरिखी अप्रत्याख्यान | क्रिया लगती है. अहो भगवन् ! सब को एक सरिखी क्रिया लगनेका क्या कारन ? अहो गौतम !
898 पहिला शतकका नवत्रा उद्देशा 48
२.३१