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पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 438
अप्पसत्था; तिसवि गमएस अवसेसं तंत्र ॥१॥ जदि सण्णिपचिंदिय तिरिक्ख , , जोणिएहितो उववजंति किं संखेज वासाउय सण्णि जाव उववजंति असंखेज वासाउय जाव उववजति ? गोयमा ! संखेजवासाउय जाव उववजंति, असंखेजवासाउय जाव उववज्जति, ॥ असंखेज्जवासाउय सण्णि पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएणं भंते! जे भविए असुरकुमारेसु उववाजत्तए सेणं भंते ! केवइय कालट्टिईएसु उववज्जेजा गोयमा ! जहण्णणं दसवास सहस्सट्टिईएसु उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमट्टिईएमु ।
उववज्जेजा ॥ २ ॥ तेणं भंते! जीवा एगसमएणं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कोवा जहां जघन्य स्थिति वाले तिर्यंच कडे हैं वहां अध्यवसाय प्रशस्त ग्रहण करना परंतु अप्रशस्त ग्रहण करना , नहीं. ॥ १॥ यदि संज्ञी पंचेन्द्रिय तियेच उत्पन्न होवे तो क्या संख्यात वर्ष वाले या असंख्यात वर्ष वाले उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! संख्यात वर्ष के आयुष्यवाले उत्पन्न होवे और असंख्यात वर्ष के आए वाले भी उत्पन्न होवे. असंख्यात वर्ष के आयुष्य वाले मंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच असुरकुमार में उत्पन्न होने योग्य होते हैं वे कितनी स्थिति से उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट तीन पल्यापम देवकुरु उत्तरकुरु. युगलक्षेत्र वाले अपना आयुष्य जितना देवका आयुष्य बांधे. ॥२॥ अहो भगवन!
48+ चौबीसवा शतक का दूसरा उद्देशा +8+
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भावार्थ
पंचमांगा
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