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अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
दोवा तिण्णिवा उक्कोसेणं संखेज्जावा उवयजति ॥ ३ ॥ वइरोसभनाराय संघयणी ॥४॥
औगाहणा जहण्णेणं धणुहपहुत्तं, उक्कोसेणं छगाउयाइं ॥ ५॥ समचउरंस संठाण संठिया पण्णत्ता ॥ ६ ॥ चत्तारि लेस्साओ आदिल्लाओ ॥ ७ ॥ णो सम्मट्रिी मिच्छादिट्ठी णो सम्मामिच्छविट्ठीं ॥८॥णो णाणी अण्णाण णियमं दुअण्णाणी, मइ अण्णाणीय सुयअण्णाणीय ॥ ९॥ जोगो तिविहोवि ॥ १० ॥ उवओगो दुविहोवि ॥१५॥ चत्वारि सण्णाओ ॥ १२ ॥ चत्तारि कसायाओ ॥ १३ ॥ पंचइंदिया
॥ १४ ॥ तिण्णि समुग्घाया आदिल्लगा ॥ १५ ॥ समोहयावि मरंति असमोहयावि एक समय में वे कितने उत्पन्न होवे? अहो गौतम ! जघन्य एक दो नीन उत्कृष्ट संख्यास उत्पन होवे क्यों की वहां असंख्यात का अभाव है ॥ ३ ॥ एक क्ऋ षभ नाराच संघयनवाला उत्पन्न होने ॥ ४॥ अवगाहना अघन्य प्रत्येक धनुष्य पक्षी आश्री उत्कृष्ट छ गाउ ॥ ५ ॥ समचतुत्र संस्थानवाला उत्पन्न होवे ॥ ६ ॥ पहिली चार लेण्याओं ॥ ७॥ समदृष्टि और मीश्र दृष्टि नहीं उत्पन्न होते हैं परंतु मिथ्याष्टिवाले उत्पमा होते हैं॥ ८॥ ज्ञानी नहीं उत्पन्न होते हैं परंतु मति अज्ञान और श्रुत अज्ञान की नियमावाले उत्पन्न होते हैं॥९॥वीनों जोग कह है ॥ १० ॥ दोनों उपयोग ॥ ११॥ चार संज्ञा ॥१२॥ चार कषाय॥१॥ पांचो इन्द्रियों ॥१५॥ पहिली तीन समुद्घात॥१५॥ समोहया असमोहया ऐसे दोनों मरण॥१६॥माता और
पलपक-राजाबहादुर साला मुखदेव सहायजी बालामसादजी
भावार्थ
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