________________
विवाह पण्पत्ति ( भगवती) सूत्र 4882
पंचधणुहसयाई उक्कोसेणवि पंचधणुहसयाई; ठिई जहण्णेणं पुवकोडी उक्कोसेणवि पुत्र कोडी एवं अणुबंधोवि णवसुवि एतेसु गमएसु णेरइय ठिई संवेहंच जाणेजा॥सन्नत्य भवग्गहणाई दोणि जाव णव गमएसु कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाई पुवकोडीए अब्भहियाइं उक्कोसेणवि तेत्तीसं सागरोबसाइं पुषकोडीए अब्भहियाई एवइयं कालं सेवेजा एवइयं कालं गतिरागतिं करेजा ॥ सेवं भंते । भंतेत्ति चउवीस. इमसयस्स पढमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २४ ॥ १॥ .
रायगिहे जाव एवं वयासी-असुरकुमाराणं भंते ! कओहिंतो उववज्जति किं गेरइएहिं. वही उस्कृष्ट स्थिीतवाला मनुष्य सातवी नारकी में उत्पन्न होवे तो उस के भी तीनों गमाओ में पूर्वोक्त जैसी वक्तव्यता कहना. परंतु शरीर अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट पांचसो धनुष्य की स्थिति जघन्य उत्कृष्ट पूर्व क्रोड ऐमे ही अनुबंध कहना. इन के नवों गमाओं में स्थिति और संवेध कहना. सर्वत्र दो भव लेना.. नव गमाओं में कालादेश से जघन्य तेसीम सागरोपम पूर्वक्रोड अधिक और उत्कृष्ट भी तेतीस सागरोपम पूर्वक्रोड अधिक. इतना काल सेवे. इतनी गति आगति करे. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य है यह चौवीसवा शतक का पहिला उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥ २४ ॥१॥ . . १ प्रथम उद्देशे में नरक का कधन कीवा. दूसरे उदेशे में अमुरकुमार का कथन करते हैं. इस देश में
चोवीसवा शवकका दूसरा उशा वन