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मभहियाई.उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं पुन्चकोडीए अब्भहियाई एवइयं जाव करेजा ॥१॥ ५६ ॥ सोचेव जहण्णकालट्ठिईएसु उबवण्णो एसचेव वत्तव्वया णवरं
रइयट्टिई संवेहं च जाणेजा ॥ २ ॥ सोचेव उक्कोस कालदिईएसु उववण्णो एसचेव वत्तव्वया णवर संवेहं च जाणेज्जा ॥ ३ ॥ सोचेव अप्पणा जहण्ण कालट्टिईओ जाओ तस्सवि तिसुगमएसु एसचेव वत्तव्वया णवरं सरीरोगाहणा जहण्णण रयणि पुहुत्तं उक्कोसेणवि रयणिपुहुत्तं, ट्ठिई जहण्णणं वासपुहुत्तं उक्कोसेणंवि वासपुहुत्तं एवं अणुबंधोवि ॥ संबेहो उवउंजिऊण भाणियन्यो ।॥ ६ ॥ सोचव अप्पणा उक्कोस
कालाट्टिईओजाओ तस्स वितिसुगमएसु एसचेव वत्तव्वया णवरं सरीरोगाहणा जहण्णेणं अधिक. उत्कृष्ट तेत्तीस सागरोपम और पूर्व क्रांड आधिक. यावत् करे ॥५६॥ वही जघन्य स्थितिवाली नरक में उत्पन्न होवे तो पैसेही कहना परंतु नारकी की स्थिति और संबंध में भिन्नता कहना. वही उत्कृष्ट स्थिति वाली नरक में उत्पन हो तो वैसेही कहना परंतु संबंधमें भिन्नता कहना. वही जघन्य स्थिति वाला मनुष्य
सातवी नरक में उत्पन हो तो तीनों गमाओं में वैसी वक्तव्यता कहना परंतु शरीर अवगाहना जघन्य 10 उत्कृष्ट प्रत्येक हाथ स्थिति जपन्य उत्कृष्ट प्रयेक वर्ष ऐसे ही अनुबंध जानना. संबंध में भिन्नता कहना..
4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषीजी
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.