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सूत्र
भावार्थ
4387 पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती ) मूत्र +
परिहायति, तहेव तिरिक्ख जोणियाणं कालादेसोवि तहेव णवरं मणुस्साई जाणि यव्वा ॥ ५५ ॥ पज्जत संखज्ज बासाउय सण्णि मणुस्सेणं भंते ! जेभविए अहे सत्तम पुढविरइएस उववजित्तए सेणं भंते ! केवइय कालट्ठिईएस उववजेज्जा गोयमा ! जहणणं वावीसं सागरोत्रमट्ठिईएसु उक्कोसेणं तेत्तीस सागरीवमठिईएस उववज्जेजा ॥ णं भंते ! जीवा एगसमएणं अवसेसो सोचेव सक्करप्पभ पुढवी गमओ यन्त्रो णवरं पढम संघयणं ॥ इत्थीत्रेयणा ण उववज्जंति सेसं तंचेव जात्र अणुबंधात् ॥ भवादेसेणं दो भवग्गहणाई कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई वासपुहुत्त [गमा जैसे कहना. परंतु स्थिति और काया संबंध में भिन्नता जानना. ऐसे ही छठी नारकी पर्यंत कहना. तीसरी नारकी से एक २ संघयन कभी कहना. तिर्यंच का कालादेश और मनुष्य स्थिति जानना ॥५५ ॥ { अहो भगवन् ! पर्याप्त संख्यात वर्ष के आयुष्यवाले मनुष्य सातवी नरक में उत्पन्न होता है वह कितनी { स्थिति से उत्पन्न होता है ? अहो गौतम ! जघन्य बावीस सागरोपम उत्कृष्ट तेत्तीस सागरोपम. अब शेष सब शर्कर प्रभा पृथ्वी का गमा जानना. विशेष में पहिला संघयन, स्त्री वेद उत्पन्न होवे नहीं, शेष अनुबंध {पर्यंत पहिले जैसे कहना. भवादेश से दो भव कालादेश से जघन्य बावीस सागरोपम और प्रत्येक वर्ष
488+- चौवीसवा शतक का पहिला उद्देशा 9
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