SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2599
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पण्णति ( भगवती ) मूत्र +4 सेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई मासपुहत्तमभहियाई उकोसेणं चत्तारि पुन्चकोडीओ चतालीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ एवइयं जाव करेजा ॥ ४६ ॥ सोचेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो एसचेव वत्तव्वया णवरं कालादेसेणं जहण्णणं सागरोवमं मासपुहत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं पुन्यकोडीहिं अन्भहियाई एवइयं जाव करेजा॥४७॥सोचेव अप्पणा जहण्णकालट्ठिईओ जाओ एसचेक वत्तन्वया णवर इमाइं णाणत्ताई सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलपुहुप्तं उक्कोसणवि अंगुलपुडुत्तं, तिण्णिणाणा तिण्णि अण्णाणा भयणाए, पंच समुग्घाया आदिजा दिई मास अधिक. उत्कृष्ट चार पूर्व क्रोड और चालीस हज़ार वर्ष अधिक. इतना यावत् करे ॥ ४६ ॥ वहीं उत्कृष्ट स्थिति से उत्पन हुवा उपर्युक्त लकव्यता कहना. विशेष में कालादेश से जघन्य एक सामरोपमा और प्रत्येक मास अधिक उत्कृष्ट चार सागरोपम और चार पूर्व क्रोड अधिक इतना यावत् करे. ॥४७॥ वही जघन्य स्थितिवाला पर्याप्त संख्यात वर्ष के आयुष्यवाला मनुष्य रत्नप्रभा में उत्पन्न होवे तो कितनी स्थिति से उत्पन्न होने ? वगैरह सब वक्तव्यता ऐसे ही जानना परंतु शरीर अंगाहना जघन्य उत्कृष्ट प्रत्येक मुल, तीन शान तीन अज्ञान की भजना, पहिली पांच समुयात स्थिति और अनुबंध जपन्य । चौवीसवा शतकका पहिला उद्देशा8989
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy