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पर अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अम लक ऋषिजी gi
अणुबंधोय, जहण्णेणं मासपुहुत्तं उक्कोसेणवि मासपुहुत्तं सेसं तंचेव जाव भवादेसोत्ति कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई मासपुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं मासपुहुत्तेहिं अब्भहियाई एवइयं जाव करेजा ॥४८॥ सोचेव जहण्ण कालाट्ठिईएसु उववण्णो एसचेव वत्तव्वया चउत्थगमग सरिसा णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं दस वाससहस्साई मासपुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं चत्तालीसं-वाससहस्साई .. चउहिं मासपुहुत्तमभहियाइं एवइयं जाव करेजा ॥ ४९ ॥ सोचेव उक्कोस काल ढिईएसु उववण्णो एसचेव गमगो णवर कालादेसेणं जहण्णेणं सागरोवमं मास
पुहुत्त मब्भाहयं उक्कोसेणं चत्तर सागरोवमाइं चउहिं मासपुहुत्तेहिं मन्भहियाइं एवइयं उत्कृष्ट प्रसेक मास शेष भवादेश पर्यंत पहिले जैसे कहना. कालादेश से जघन्य दश हजार वर्ष और प्रत्येक मास अधिक उत्कृष्ट चार सागरोपम और चार प्रत्येक मास अधिक इतना यावत् करे ॥ ४८ ॥ वही जघन्य स्थितिवाली में उत्पन्न होवे वगैरह चौथा गमा जानना. कालादेश से जघन्य दश हजार वर्ष
येक मास अधिक उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष और चार प्रत्येक मास अधिक. इतना यावत् करे । वही उत्कृष्ट स्थिति से उत्पन्न हुवा यही गमा जानना. विशेष में कालादेश से जघन्य सागरोपम और
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी .
भावार्थ