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________________ 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + हियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहि पुन्चकोडीहिं अब्भहियाई एवइयं कालं सेवेज्जा ३ ॥ ३५ ॥ जहण्ण कालटिईयपज्जत्तसंखेजवासाउय सण्णिपंचिंदिय तिरिक्खजोणिएणं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढवी जाव उववजित्तए सेणं भंते ! केवइय कालदिईएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्गेणं दसवाससहस्सठिईएसु उक्कोसेणं सागरोवमठिईएसु उववजेजा ॥ तेणं भंते ! जीवा अवसेसो सोचेव गमओ णवरं इमाइं अट्ठ णाणत्ताई सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखजइ भागं उक्को सेणं धणुहपुहुत्तं ॥ लेस्साओ तिण्णि आदिल्लाओ णो सम्मद्दिट्टि मिच्छट्ठिीणो सम्मा एक सागरोपम नरक भवसंबंधी और अंतर्मुहूर्त अधिक तिर्यंचभव संबंधी उत्कृष्ट चार सागरोपम नरक आश्री और चार पूर्व क्रोड अधिक तिर्यंच आश्री इतना काल सेवे यावत् गतागत करे ॥ ३५ ॥ अहो भगवन् ! जघन्यस्थिति वाले, पर्याप्त संख्यात वर्ष के आयुष्य वाले तिर्यंच रत्नप्रभा में उत्पन्न होने योग्य होवे वह वहां कितने काल की स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट एक सागरोपम शेष सब पहिले जैसे कहना. परंतु इस में आठ विशेषता है. वहां अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट एक हजार योजन की कही उस के स्थान यहां. पर जघन्य अंगुल के, प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्ञलापसादजी. भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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